11
दुआ किस तरह करनी है
एक दिन ईसा कहीं दुआ कर रहा था। जब वह फ़ारिग़ हुआ तो उसके किसी शागिर्द ने कहा, “ख़ुदावंद, हमें दुआ करना सिखाएँ, जिस तरह यहया ने भी अपने शागिर्दों को दुआ करने की तालीम दी।”
ईसा ने कहा, “दुआ करते वक़्त यों कहना,
ऐ बाप,
तेरा नाम मुक़द्दस माना जाए।
तेरी बादशाही आए।
हर रोज़ हमें हमारी रोज़ की रोटी दे।
हमारे गुनाहों को मुआफ़ कर।
क्योंकि हम भी हर एक को मुआफ़ करते हैं
जो हमारा गुनाह करता है। *
और हमें आज़माइश में न पड़ने दे।”
माँगते रहो
फिर उसने उनसे कहा, “अगर तुममें से कोई आधी रात के वक़्त अपने दोस्त के घर जाकर कहे, ‘भाई, मुझे तीन रोटियाँ दे, बाद में मैं यह वापस कर दूँगा। क्योंकि मेरा दोस्त सफ़र करके मेरे पास आया है और मैं उसे खाने के लिए कुछ नहीं दे सकता।’ अब फ़र्ज़ करो कि यह दोस्त अंदर से जवाब दे, ‘मेहरबानी करके मुझे तंग न कर। दरवाज़े पर ताला लगा है और मेरे बच्चे मेरे साथ बिस्तर पर हैं, इसलिए मैं तुझे देने के लिए उठ नहीं सकता।’ लेकिन मैं तुमको यह बताता हूँ कि अगर वह दोस्ती की ख़ातिर न भी उठे, तो भी वह अपने दोस्त के बेजा इसरार की वजह से उस की तमाम ज़रूरत पूरी करेगा।
चुनाँचे माँगते रहो तो तुमको दिया जाएगा, ढूँडते रहो तो तुमको मिल जाएगा। खटखटाते रहो तो तुम्हारे लिए दरवाज़ा खोल दिया जाएगा। 10 क्योंकि जो भी माँगता है वह पाता है, जो ढूँडता है उसे मिलता है और जो खटखटाता है उसके लिए दरवाज़ा खोल दिया जाता है। 11 तुम बापों में से कौन अपने बेटे को साँप देगा अगर वह मछली माँगे? 12 या कौन उसे बिच्छू देगा अगर वह अंडा माँगे? कोई नहीं! 13 जब तुम बुरे होने के बावुजूद इतने समझदार हो कि अपने बच्चों को अच्छी चीज़ें दे सकते हो तो फिर कितनी ज़्यादा यक़ीनी बात है कि आसमानी बाप अपने माँगनेवालों को रूहुल-क़ुद्स देगा।”
ईसा और बदरूहों का सरदार
14 एक दिन ईसा ने एक ऐसी बदरूह निकाल दी जो गूँगी थी। जब वह गूँगे आदमी में से निकली तो वह बोलने लगा। वहाँ पर जमा लोग हक्का-बक्का रह गए। 15 लेकिन बाज़ ने कहा, “यह तो बदरूहों के सरदार बाल-ज़बूल की मदद से बदरूहों को निकालता है।”
16 औरों ने उसे आज़माने के लिए किसी इलाही निशान का मुतालबा किया। 17 लेकिन ईसा ने उनके ख़यालात जानकर कहा, “जिस बादशाही में भी फूट पड़ जाए वह तबाह हो जाएगी, और जिस घराने की ऐसी हालत हो वह भी ख़ाक में मिल जाएगा। 18 तुम कहते हो कि मैं बाल-ज़बूल की मदद से बदरूहों को निकालता हूँ। लेकिन अगर इबलीस में फूट पड़ गई है तो फिर उस की बादशाही किस तरह क़ायम रह सकती है? 19 दूसरा सवाल यह है, अगर मैं बाल-ज़बूल की मदद से बदरूहों को निकालता हूँ तो तुम्हारे बेटे उन्हें किसके ज़रीए निकालते हैं? चुनाँचे वही इस बात में तुम्हारे मुंसिफ़ होंगे। 20 लेकिन अगर मैं अल्लाह की क़ुदरत से बदरूहों को निकालता हूँ तो फिर अल्लाह की बादशाही तुम्हारे पास पहुँच चुकी है।
21 जब तक कोई ज़ोरावर आदमी हथियारों से लैस अपने डेरे की पहरादारी करे उस वक़्त तक उस की मिलकियत महफ़ूज़ रहती है। 22 लेकिन अगर कोई ज़्यादा ताक़तवर शख़्स हमला करके उस पर ग़ालिब आए तो वह उसके असला पर क़ब्ज़ा करेगा जिस पर उसका भरोसा था, और लूटा हुआ माल अपने लोगों में तक़सीम कर देगा।
23 जो मेरे साथ नहीं वह मेरे ख़िलाफ़ है और जो मेरे साथ जमा नहीं करता वह बिखेरता है।
बदरूह की वापसी
24 जब कोई बदरूह किसी शख़्स में से निकलती है तो वह वीरान इलाक़ों में से गुज़रती हुई आराम की जगह तलाश करती है। लेकिन जब उसे कोई ऐसा मक़ाम नहीं मिलता तो वह कहती है, ‘मैं अपने उस घर में वापस चली जाऊँगी जिसमें से निकली थी।’ 25 वह वापस आकर देखती है कि किसी ने झाड़ू देकर सब कुछ सलीक़े से रख दिया है। 26 फिर वह जाकर सात और बदरूहें ढूँड लाती है जो उससे बदतर होती हैं, और वह सब उस शख़्स में घुसकर रहने लगती हैं। चुनाँचे अब उस आदमी की हालत पहले की निसबत ज़्यादा बुरी हो जाती है।”
कौन मुबारक है?
27 ईसा अभी यह बात कर ही रहा था कि एक औरत ने ऊँची आवाज़ से कहा, “आपकी माँ मुबारक है जिसने आपको जन्म दिया और आपको दूध पिलाया।”
28 लेकिन ईसा ने जवाब दिया, “बात यह नहीं है। हक़ीक़त में वह मुबारक हैं जो अल्लाह का कलाम सुनकर उस पर अमल करते हैं।”
इलाही निशान का तक़ाज़ा
29 सुननेवालों की तादाद बहुत बढ़ गई तो वह कहने लगा, “यह नसल शरीर है, क्योंकि यह मुझसे इलाही निशान का तक़ाज़ा करती है। लेकिन इसे कोई भी इलाही निशान पेश नहीं किया जाएगा सिवाए यूनुस के निशान के। 30 क्योंकि जिस तरह यूनुस नीनवा शहर के बाशिंदों के लिए निशान था बिलकुल उसी तरह इब्ने-आदम इस नसल के लिए निशान होगा। 31 क़ियामत के दिन जुनूबी मुल्क सबा की मलिका इस नसल के लोगों के साथ खड़ी होकर उन्हें मुजरिम क़रार देगी। क्योंकि वह दूर-दराज़ मुल्क से सुलेमान की हिकमत सुनने के लिए आई थी जबकि यहाँ वह है जो सुलेमान से भी बड़ा है। 32 उस दिन नीनवा के बाशिंदे भी इस नसल के लोगों के साथ खड़े होकर उन्हें मुजरिम ठहराएँगे। क्योंकि यूनुस के एलान पर उन्होंने तौबा की थी जबकि यहाँ वह है जो यूनुस से भी बड़ा है।
बदन की रौशनी
33 जब कोई शख़्स चराग़ जलाता है तो न वह उसे छुपाता, न बरतन के नीचे रखता बल्कि उसे शमादान पर रख देता है ताकि उस की रौशनी अंदर आनेवालों को नज़र आए। 34 तेरी आँख तेरे बदन का चराग़ है। अगर तेरी आँख ठीक हो तो तेरा पूरा जिस्म रौशन होगा। लेकिन अगर आँख ख़राब हो तो पूरा जिस्म अंधेरा ही अंधेरा होगा। 35 ख़बरदार! ऐसा न हो कि जो रौशनी तेरे अंदर है वह हक़ीक़त में तारीकी हो। 36 चुनाँचे अगर तेरा पूरा जिस्म रौशन हो और कोई भी हिस्सा तारीक न हो तो फिर वह बिलकुल रौशन होगा, ऐसा जैसा उस वक़्त होता है जब चराग़ तुझे अपने चमकने-दमकने से रौशन कर देता है।”
फ़रीसियों पर अफ़सोस
37 ईसा अभी बात कर रहा था कि किसी फ़रीसी ने उसे खाने की दावत दी। चुनाँचे वह उसके घर में जाकर खाने के लिए बैठ गया। 38 मेज़बान बड़ा हैरान हुआ, क्योंकि उसने देखा कि ईसा हाथ धोए बग़ैर खाने के लिए बैठ गया है। 39 लेकिन ख़ुदावंद ने उससे कहा, “देखो, तुम फ़रीसी बाहर से हर प्याले और बरतन की सफ़ाई करते हो, लेकिन अंदर से तुम लूट-मार और शरारत से भरे होते हो। 40 नादानो! अल्लाह ने बाहरवाले हिस्से को ख़लक़ किया, तो क्या उसने अंदरवाले हिस्से को नहीं बनाया? 41 चुनाँचे जो कुछ बरतन के अंदर है उसे ग़रीबों को दे दो। फिर तुम्हारे लिए सब कुछ पाक-साफ़ होगा।
42 फ़रीसियो, तुम पर अफ़सोस! क्योंकि एक तरफ़ तुम पौदीना, सदाब और बाग़ की हर क़िस्म की तरकारी का दसवाँ हिस्सा अल्लाह के लिए मख़सूस करते हो, लेकिन दूसरी तरफ़ तुम इनसाफ़ और अल्लाह की मुहब्बत को नज़रंदाज़ करते हो। लाज़िम है कि तुम यह काम भी करो और पहला भी न छोड़ो।
43 फ़रीसियो, तुम पर अफ़सोस! क्योंकि तुम इबादतख़ानों की इज़्ज़त की कुरसियों पर बैठने के लिए बेचैन रहते और बाज़ार में लोगों का सलाम सुनने के लिए तड़पते हो। 44 हाँ, तुम पर अफ़सोस! क्योंकि तुम पोशीदा क़ब्रों की मानिंद हो जिन पर से लोग नादानिस्ता तौर पर गुज़रते हैं।”
45 शरीअत के एक आलिम ने एतराज़ किया, “उस्ताद, आप यह कहकर हमारी भी बेइज़्ज़ती करते हैं।”
46 ईसा ने जवाब दिया, “तुम शरीअत के आलिमों पर भी अफ़सोस! क्योंकि तुम लोगों पर भारी बोझ डाल देते हो जो मुश्किल से उठाया जा सकता है। न सिर्फ़ यह बल्कि तुम ख़ुद इस बोझ को अपनी एक उँगली भी नहीं लगाते। 47 तुम पर अफ़सोस! क्योंकि तुम नबियों के मज़ार बना देते हो, उनके जिन्हें तुम्हारे बापदादा ने मार डाला। 48 इससे तुम गवाही देते हो कि तुम वह कुछ पसंद करते हो जो तुम्हारे बापदादा ने किया। उन्होंने नबियों को क़त्ल किया जबकि तुम उनके मज़ार तामीर करते हो। 49 इसलिए अल्लाह की हिकमत ने कहा, ‘मैं उनमें नबी और रसूल भेज दूँगी। उनमें से बाज़ को वह क़त्ल करेंगे और बाज़ को सताएँगे।’ 50 नतीजे में यह नसल तमाम नबियों के क़त्ल की ज़िम्मादार ठहरेगी—दुनिया की तख़लीक़ से लेकर आज तक, 51 यानी हाबील के क़त्ल से लेकर ज़करियाह के क़त्ल तक, जिसे बैतुल-मुक़द्दस के सहन में मौजूद क़ुरबानगाह और बैतुल-मुक़द्दस के दरवाज़े के दरमियान क़त्ल किया गया। हाँ, मैं तुमको बताता हूँ कि यह नसल ज़रूर उनकी ज़िम्मादार ठहरेगी।
52 शरीअत के आलिमो, तुम पर अफ़सोस! क्योंकि तुमने इल्म की कुंजी को छीन लिया है। न सिर्फ़ यह कि तुम ख़ुद दाख़िल नहीं हुए, बल्कि तुमने दाख़िल होनेवालों को भी रोक लिया।”
53 जब ईसा वहाँ से निकला तो आलिम और फ़रीसी उसके सख़्त मुख़ालिफ़ हो गए और बड़े ग़ौर से उस की पूछ-गछ करने लगे। 54 वह इस ताक में रहे कि उसे मुँह से निकली किसी बात की वजह से पकड़ें।
* 11:4 लफ़्ज़ी तरजुमा : जो हमारा क़र्ज़दार है।