18
एथोपिया की अदालत
फड़फड़ाते बादबानों * के मुल्क पर अफ़सोस! एथोपिया पर अफ़सोस जहाँ कूश के दरिया बहते हैं, और जो अपने क़ासिदों को आबी नरसल की कश्तियों में बिठाकर समुंदरी सफ़रों पर भेजता है। ऐ तेज़रौ क़ासिदो, लंबे क़द और चिकनी-चुपड़ी जिल्दवाली क़ौम के पास जाओ। उस क़ौम के पास पहुँचो जिससे दीगर क़ौमें दूर-दराज़ इलाक़ों तक डरती हैं, जो ज़बरदस्ती सब कुछ पाँवों तले कुचल देती है, और जिसका मुल्क दरियाओं से बटा हुआ है।
ऐ दुनिया के तमाम बाशिंदो, ज़मीन के तमाम बसनेवालो! जब पहाड़ों पर झंडा गाढ़ा जाए तो उस पर ध्यान दो! जब नरसिंगा बजाया जाए तो उस पर ग़ौर करो! क्योंकि रब मुझसे हमकलाम हुआ है, “मैं अपनी सुकूनतगाह से ख़ामोशी से देखता रहूँगा। लेकिन मेरी यह ख़ामोशी दोपहर की चिलचिलाती धूप या मौसमे-गरमा में धुंध के बादल की मानिंद होगी।” क्योंकि अंगूर की फ़सल के पकने से पहले ही रब अपना हाथ बढ़ा देगा। फूलों के ख़त्म होने पर जब अंगूर पक रहे होंगे वह कोंपलों को छुरी से काटेगा, फैलती हुई शाख़ों को तोड़ तोड़कर उनकी काँट-छाँट करेगा। यही एथोपिया की हालत होगी। उस की लाशों को पहाड़ों के शिकारी परिंदों और जंगली जानवरों के हवाले किया जाएगा। मौसमे-गरमा के दौरान शिकारी परिंदे उन्हें खाते जाएंगे, और सर्दियों में जंगली जानवर लाशों से सेर हो जाएंगे।
उस वक़्त लंबे क़द और चिकनी-चुपड़ी जिल्दवाली यह क़ौम रब्बुल-अफ़वाज के हुज़ूर तोह्फ़ा लाएगी। हाँ, जिन लोगों से दीगर क़ौमें दूर-दराज़ इलाक़ों तक डरती हैं और जो ज़बरदस्ती सब कुछ पाँवों तले कुचल देते हैं वह दरियाओं से बटे हुए अपने मुल्क से आकर अपना तोह्फ़ा सिय्यून पहाड़ पर पेश करेंगे, वहाँ जहाँ रब्बुल-अफ़वाज का नाम सुकूनत करता है।
* 18:1 एक और मुमकिना तरजुमा : फड़फड़ाती टिड्डियों।