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ईसा मूसा से बड़ा है
मुक़द्दस भाइयो, जो मेरे साथ अल्लाह के बुलाए हुए हैं! ईसा पर ग़ौरो-ख़ौज़ करते रहें जो अल्लाह का पैग़ंबर और इमामे-आज़म है और जिसका हम इक़रार करते हैं। ईसा अल्लाह का वफ़ादार रहा जब उसने उसे यह काम करने के लिए मुक़र्रर किया, बिलकुल उसी तरह जिस तरह मूसा भी वफ़ादार रहा जब अल्लाह का पूरा घर उसके सुपुर्द किया गया। अब जो किसी घर को तामीर करता है उसे घर की निसबत ज़्यादा इज़्ज़त हासिल होती है। इसी तरह ईसा मूसा की निसबत ज़्यादा इज़्ज़त के लायक़ है। क्योंकि हर घर को किसी न किसी ने बनाया होता है, जबकि अल्लाह ने सब कुछ बनाया है। मूसा तो अल्लाह के पूरे घर में ख़िदमत करते वक़्त वफ़ादार रहा, लेकिन मुलाज़िम की हैसियत से ताकि कलामे-मुक़द्दस की आनेवाली बातों की गवाही देता रहे। मसीह फ़रक़ है। उसे फ़रज़ंद की हैसियत से अल्लाह के घर पर इख़्तियार है और इसी में वह वफ़ादार है। हम उसका घर हैं बशर्तेकि हम अपनी दिलेरी और वह उम्मीद क़ायम रखें जिस पर हम फ़ख़र करते हैं।
अल्लाह की क़ौम के लिए सुकून
चुनाँचे जिस तरह रूहुल-क़ुद्स फ़रमाता है,
“अगर तुम आज अल्लाह की आवाज़ सुनो
तो अपने दिलों को सख़्त न करो जिस तरह बग़ावत के दिन हुआ,
जब तुम्हारे बापदादा ने रेगिस्तान में मुझे आज़माया।
वहाँ उन्होंने मुझे आज़माया और जाँचा,
हालाँकि उन्होंने चालीस साल के दौरान मेरे काम देख लिए थे।
10 इसलिए मुझे उस नसल पर ग़ुस्सा आया और मैं बोला,
‘उनके दिल हमेशा सहीह राह से हट जाते हैं
और वह मेरी राहें नहीं जानते।’
11 अपने ग़ज़ब में मैंने क़सम खाई,
‘यह कभी उस मुल्क में दाख़िल नहीं होंगे
जहाँ मैं उन्हें सुकून देता’।”
12 भाइयो, ख़बरदार रहें ताकि आपमें से किसी का दिल बुराई और कुफ़र से भरकर ज़िंदा ख़ुदा से बरगश्ता न हो जाए। 13 इसके बजाए जब तक अल्लाह का यह फ़रमान क़ायम है रोज़ाना एक दूसरे की हौसलाअफ़्ज़ाई करें ताकि आपमें से कोई भी गुनाह के फ़रेब में आकर सख़्तदिल न हो। 14 बात यह है कि हम मसीह के शरीके-कार बन गए हैं। लेकिन इस शर्त पर कि हम आख़िर तक वह एतमाद मज़बूती से क़ायम रखें जो हम आग़ाज़ में रखते थे।
15 मज़कूरा कलाम में लिखा है,
“अगर तुम आज अल्लाह की आवाज़ सुनो,
तो अपने दिलों को सख़्त न करो जिस तरह बग़ावत के दिन हुआ।”
16 यह कौन थे जो अल्लाह की आवाज़ सुनकर बाग़ी हो गए? वह सब जिन्हें मूसा मिसर से निकालकर बाहर लाया। 17 और यह कौन थे जिनसे अल्लाह चालीस साल के दौरान नाराज़ रहा? यह वही थे जिन्होंने गुनाह किया और जो रेगिस्तान में मरकर वहीं पड़े रहे। 18 अल्लाह ने किनकी बाबत क़सम खाई कि “यह कभी भी उस मुल्क में दाख़िल नहीं होंगे जहाँ मैं उन्हें सुकून देता”? ज़ाहिर है उनकी बाबत जिन्होंने नाफ़रमानी की थी। 19 चुनाँचे हम देखते हैं कि वह ईमान न रखने की वजह से मुल्क में दाख़िल न हो सके।