रसूलों के आ'माल
मुसन्निफ़ की पहचान
1 लूक़ा जो डाक्टर है वह इस किताब का मुसन्निफ़ है आमाल की किताब के कई एक वाक़ियात के लिए लूक़ा आँखों देखी गवाह था जिन्हें वह इन हावालाजात में पेश करता है। (16:10 — 17; 20:5 — 21:18; 27:1 — 28:16) रिवायतन उस ने ख़ुद को एक ग़ैर यहूदी बतौर साबित किया, मगर शुरू में वह एक मन्नाद था।
लिखे जाने की तारीख़ और जगह
इस के लिखे जाने की तारीख़ तक़रीबन ईस्वी 60 - 63 के बीच है।
इसे लिखे जाने की ख़ास जगहें यरूशलेम, सामरिया लिद्दा, याफ़ा, अन्ताकिया, इकूनियम, लुस्तरा दरिबे, फ़िलिप्पी, थिसलुनीका, बीरिया, एथन्ज़ कुरिन्थुस, इफ़िसुस, कै़सरिया, मालटा और रोम है।
क़बूल कुनिन्दा पाने वाले
लूक़ा ने थियोफ़ुलुस को लिखा (आमाल 1:1) बद क़िस्मती से थियोफ़ुलुस की बाबत हम ज़्यादा नहीं जानते। कुछ हद तक मुमकिन है कि वह लूक़ा का सरपरस्त या हामी रहा होगा। या फिर थियोफिलुस नाम के मायने जो “खुदा का प्यारा” है यह आलमगीर लक़ब बतोर तमाम मसीहियों के लिए इस्तेमाल किया गया है।
असल मक़सूद
आमाल की किताब लिखने का मक़्सद था कि इब्तिदाई कलीसिया की पैदाइश और उसकी तरक़्क़ी की कहानी बताए। इस के अलावा यूहन्ना इस्तबाग़ी येसू और उसके बारह शागिर्दों ने जो पैग़ाम लोगों को सुनाया था उसे जारी रखा जाए। पेन्तीकुस्त के दिन रूह — उल — क़ुदुस के नाज़िल होने के ज़रिए मसीहियत का जो फैलाव हुआ, उसे यह किताब क़लम्बन्द करती है।
मौज़’अ
इन्जील का फैलाव।
बैरूनी ख़ाका
1. रूह'उल'कुदुस का वादा — 1:1-26
2. पेन्तीकुस्त के दिन रूह — उल — कुदुस का मज़ाहिरा — 2:1-4
3. पतरस के कलाम की खि़दमतगुज़ारी के वसीले से कलीसिया की पैदाइश — 2:5-8:3
4. पौलूस के वसीले से यहुदिया और सामरिया मे कलीसिया के रसूलों का इज़ाफ़ा — 8:4-12:25
5. मसीहियत का दुनिया के आख़री हिस्से तक फैल जाना — 13:1-28:31
1
पाक रूह मिलने का वादा
1 ऐ थियुफ़िलुस मैने पहली किताब उन सब बातों के बयान में लिखी जो ईसा शुरू; में करता और सिखाता रहा।
2 उस दिन तक जिसमें वो उन रसूलों को जिन्हें उसने चुना था रूह — उल — क़ुद्दूस के वसीले से हुक्म देकर ऊपर उठाया गया।
3 ईसा ने तकलीफ़ सहने के बाद बहुत से सबूतों से अपने आपको उन पर ज़िन्दा ज़ाहिर भी किया, चुनाँचे वो चालीस दिन तक उनको नज़र आता और ख़ुदा की बादशाही की बातें कहता रहा।
4 और उनसे मिलकर उन्हें हुक्म दिया, “येरूशलेम से बाहर न जाओ, बल्कि बाप के उस वा'दे के पूरा होने का इन्तिज़ार करो, जिसके बारे में तुम मुझ से सुन चुके हो,
5 क्यूँकि युहन्ना ने तो पानी से बपतिस्मा दिया मगर तुम थोड़े दिनों के बाद रूह — उल — क़ुद्दूस से बपतिस्मा पाओगे।”
6 पस उन्होंने इकट्ठा होकर पूछा, “ऐ ख़ुदावन्द! क्या तू इसी वक़्त इस्राईल को बादशाही फिर' अता करेगा?”
7 उसने उनसे कहा, “उन वक़्तों और मी'आदों का जानना, जिन्हें बाप ने अपने ही इख़्तियार में रख्खा है, तुम्हारा काम नहीं।
8 लेकिन जब रूह — उल — क़ुद्दूस तुम पर नाज़िल होगा तो तुम ताक़त पाओगे; और येरूशलेम और तमाम यहूदिया और सामरिया में, बल्कि ज़मीन के आख़ीर तक मेरे गवाह होगे।”
9 ये कहकर वो उनको देखते देखते ऊपर उठा लिया गया, और बादलों ने उसे उनकी नज़रों से छिपा लिया।
10 उसके जाते वक़्त वो आसमान की तरफ़ ग़ौर से देख रहे थे, तो देखो, दो मर्द सफ़ेद पोशाक पहने उनके पास आ खड़े हुए,
11 और कहने लगे, “ऐ गलीली मर्दो। तुम क्यूँ खड़े आसमान की तरफ़ देखते हो? यही ईसा जो तुम्हारे पास से आसमान पर उठाया गया है, इसी तरह फिर आएगा जिस तरह तुम ने उसे आसमान पर जाते देखा है।”
12 तब वो उस पहाड़ से जो ज़ैतून का कहलाता है और येरूशलेम के नज़दीक सबत की मन्ज़िल के फ़ासले पर है येरूशलेम को फिरे।
13 और जब उसमें दाख़िल हुए तो उस बालाख़ाने पर चढ़े जिस में वो या'नी पतरस और यूहन्ना, और या'क़ूब और अन्द्रियास और फ़िलिप्पुस, तोमा, बरतुल्माई, मत्ती, हलफ़ी का बेटा या'क़ूब, शमौन ज़ेलोतेस और या'क़ूब का बेटा यहूदाह रहते थे।
14 ये सब के सब चन्द 'औरतों और ईसा की माँ मरियम और उसके भाइयों के साथ एक दिल होकर दुआ में मशग़ूल रहे।
15 उन्हीं दिनों पतरस भाइयों में जो तक़रीबन एक सौ बीस शख़्सों की जमा'अत थी खड़ा होकर कहने लगा,
16 “ऐ भाइयों उस नबुव्वत का पूरा होना ज़रूरी था जो रूह — उल — क़ुद्दूस ने दाऊद के ज़बानी उस यहूदा के हक़ में पहले कहा था, जो ईसा के पकड़ने वालों का रहनुमा हुआ।
17 क्यूँकि वो हम में शुमार किया गया और उस ने इस ख़िदमत का हिस्सा पाया।”
18 उस ने बदकारी की कमाई से एक खेत ख़रीदा, और सिर के बल गिरा और उसका पेट फट गया और उसकी सब आँतड़ीयां निकल पड़ीं।
19 और ये येरूशलेम के सब रहने वालों को मा'लूम हुआ, यहाँ तक कि उस खेत का नाम उनकी ज़बान में हैक़लेदमा पड़ गया या'नी [ख़ून का खेत]।
20 क्यूँकि ज़बूर में लिखा है,
'उसका घर उजड़ जाए,
और उसमें कोई बसने वाला न रहे
और उसका मर्तबा दुसरा ले ले।
21 पस जितने 'अर्से तक ख़ुदावन्द ईसा हमारे साथ आता जाता रहा, यानी यूहन्ना के बपतिस्मे से लेकर ख़ुदावन्द के हमारे पास से उठाए जाने तक — जो बराबर हमारे साथ रहे,
22 चाहिए कि उन में से एक आदमी हमारे साथ उसके जी उठने का गवाह बने।
23 फिर उन्होंने दो को पेश किया। एक यूसुफ़ को जो बरसब्बा कहलाता है और जिसका लक़ब यूसतुस है। दूसरा मत्तय्याह को।
24 और ये कह कर दुआ की, “ऐ ख़ुदावन्द! तू जो सब के दिलों को जानता है, ये ज़ाहिर कर कि इन दोनों में से तूने किस को चुना है
25 ताकि वह इस ख़िदमत और रसूलों की जगह ले, जिसे यहूदाह छोड़ कर अपनी जगह गया।”
26 फिर उन्होंने उनके बारे में पर्ची डाली, और पर्ची मत्तय्याह के नाम की निकली। पस वो उन ग्यारह रसूलों के साथ शुमार किया गया।