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मरी हुयी माखी को वजह अत्तर को सड़नो अऊर बास आवन लगय हय; अऊर थोड़ी सी मूर्खता बुद्धि अऊर मान सम्मान ख घटाय देवय हय। बुद्धिमान को मन उचित बात को तरफ रह्य हय पर मूर्ख को मन ओको खिलाफ रह्य हय। जब मूर्ख रस्ता पर चलतो हुयो जावय हय, तब ओको चलनो सीच ओकी मूर्खता दिख जावय हय, जेको सी हर व्यक्ति देख लेवय हय, कि ऊ मूर्ख हय। यदि शासक को गुस्सा तोरो पर भड़के, त अपनी जागा मत छोड़जो, कहालीकि धीरज धरनो सी बड़ो बड़ो अपराध रुकय हय। एक बुरायी हय जो मय न धरती पर देखी, या बुरायी शासक की भूल सी होवय हय : मतलब मूर्ख बड़ी मान सम्मान की जागा म ठह्यरायो जावय हंय, अऊर धनवान लोग खल्लो बैठय हय। मय न गुलामों ख घोड़ा पर जातो देख्यो हय, जब की शासक गुलामों को तरह पैदल चल रह्यो होतो। जो दूसरो लायी गड्डा खोदय हय ऊ खुद ओको म गिरेंन अऊर जो दीवार तोड़य ओख सांप डसेन। जो गोटा फोड़ेंन, ऊ गोटा सीच घायल होयेंन, अऊर जो लकड़ी काटेंन, ओख लकड़ी सीच डर रहेंन। 10 यदि टंगिया बोथड़ हो अऊर आदमी ओकी धार ख पैनी नहीं करेंन, त ओख उपयोग करनो म ज्यादा ताकत लगानो पड़ेंन; पर सफल होन लायी बुद्धि सी लाभ होवय हय। 11 यदि मंत्र सी पहिले सांप डसेन, त मंत्र पढ़न वालो ख कुछ भी लाभ नहीं। 12 बुद्धिमान को शब्द को वजह अनुग्रह होवय हय, पर मूर्ख अपनो शब्द को द्वारा नाश होवय हय। 13 मूर्ख को मुंह सी निकल्यो शब्द सुरूवात सी आखरी तक मूर्खता सी पूरो होवय हय, ओकी बात को अन्त दुष्टतापूर्ण पागलपन होवय हय। 14 मूर्ख आदमी बहुत बाते बढ़ाय क बोलय हय, तब भी कोयी आदमी नहीं जानय कि का होयेंन, अऊर कौन बताय सकय हय कि ओको बाद का होन वालो हय? 15 मूर्ख को परिश्रम ओख थकावय हय, इतनो कि ओख वापसी लायी नगर की रस्ता भी नहीं जानय हय। 16 हे देश, तोरो पर हाय जब तोरो राजा बिना अनुभव वालो सेवक आय अऊर तोरो शासक प्रात:काल भोज करय हंय! 17 हे देश, तय धन्य हय जब तोरो राजा अच्छो वंशज सी हय, अऊर तोरो शासक समय पर भोज करय हंय, अऊर ऊ भी मतवालो होन ख नहीं, बल्की ताकत हासिल करन लायी! 18 आलस को वजह छत गिर जावय हय, अऊर सुस्ती सी घर चुनो लगय हय। 19 भोज हसी खुशी लायी करयो जावय हय, अऊर अंगूरीरस सी जीवन ख आनन्द मिलय हय; अऊर रुपया सी सब कुछ हासिल होवय हय। 20 अपनो मन म भी राजा की निन्दा मत करो, अऊर न अपनी आराम की जागा म रईसों की बुरायी करो। आसमान को पक्षी तोरो शब्द लिजायेंन, अऊर कोयी उड़न वालो जीव जन्तु खबर कर देयेंन।
10:8 भजन ७:१५; नीतिवचन २६:२७