सभोपदेशक की किताब
सभोपदेशक की किताब
परिचय
सभोपदेशक एक असी किताब आय जो जीवन लायी ज्ञान सिखावय हय। किताब लायी हिब्रू शीर्षक को मतलब हय “ऊ जो लोगों ख जमा करय हय।” बहुत सो विद्वानों को माननो हय कि राजा सुलैमान सभोपदेशक को लेखक होतो, लेकिन दूसरो लोग येको सी सहमत नहाय। यदि यो सुलैमान होतो जेन किताब लिखी होती, त विद्वानों को माननो हय कि येख कोयी अऊर न लिख्यो होतो, कहालीकि कयी बार येको म राजा को बजाय सेवक की भाषा को इस्तेमाल करयो गयो हय सभोपदेशक ५:८-९। उन विद्वानों को माननो हय कि सभोपदेशक की किताब सुलैमान को समय सी बहुत बाद म लिखी गयी होती, शायद ४०० अऊर २०० ईसा पूर्व को बीच।
सभोपदेशक यो कह्य क शुरू करय हय कि सब कयी एक श्वास को जसो हय जो जल्दी सी गायब होय जावय हय १:२। येको मतलब हय कि हमरो जीवन अऊर हमरो काम अस्थायी हय अऊर येख समझनो मुश्किल हय। येख बहुत कयी थोड़ो समय को बाद भूल जायेंन। येको बहुत कयी हमरो वश सी बाहेर हय। जीवन ख जसो हय वसोच स्वीकार करजो अऊर जो तुम्हरो जवर हय ओको म खुशी पानो अच्छो हय ९:९। जीवन की सब समस्यावों अऊर खुशियों पर बिचार करतो हुयो।
रूप-रेखा
१. मय किताब को लेखक अऊर ओको कुछ जीवन को अनुभवों को परिचय देऊ हय १:११
२. जीवन को अर्थ पर चर्चा करी गयी हय। १:१२; ६:९
३. शिक्षक की सलाह दी गयी हय। ६:१०; १२:८
४. यो कह्य क किताब ख खतम करयो गयो हय, कि जीवन को पूरो उद्देश्य परमेश्वर को डर माननो अऊर ओकी आज्ञावों को पालन करनो हय। १२:९-१४
1
जीवन बेकार हय
1 यरूशलेम को राजा, दाऊद को टुरा अऊर उपदेशक को वचन।
2 उपदेशक को यो वचन हय, “बेकारच बेकार, बेकारच बेकार! सब कयी बेकार हय।”
3 ऊ सब मेहनत सी जेख आदमी धरती पर करय हय, ओख का फायदा होवय हय?
4 एक पीढ़ी जावय हय, अऊर दूसरी पीढ़ी आवय हय, पर धरती जसी की वसी हमेशा रह्य हय।
5 सूरज उदय होय क डूब भी जावय हय, अऊर तेजी सी ऊ जागा ख चली जावय हय जित सी ऊ निकलय हय।
6 हवा दक्षिन को तरफ बहय हय, अऊर उत्तर दिशा को तरफ घुमती जावय हय; वा घुमती अऊर बहती रह्य हय, अऊर अपनी परिक्रमा म लौट आवय हय।
7 सब नदियां एकच जागा को तरफ बार बार बहय हय। हि सब समुन्दर म जाय क मिलय हय; पर फिर भी समुन्दर कभी नहीं भरय।
8 सब बाते थकावन वाली आय; आदमी येको वर्नन नहीं कर सकय; न त आंखी देखनो सी सन्तुष्ट होवय हंय, अऊर न कान सुननो सी भरय हंय।
9 जो कुछ भयो होतो, उच फिर होयेंन, अऊर जो कुछ बन चुक्यो हय उच फिर बनायो जायेंन; अऊर धरती पर कोयी बात नयी नहाय।
10 का असी कोयी बात हय जेको बारे म लोग कह्य सके कि देख या बात नयी हय? यो त हमरो सी पहिलो को समय सी होतो आय रह्यो हय।
11 पुरानी बातों की कुछ याद नहीं रही, अऊर होन वाली बातों की भी याद उन्को बाद आन वालों ख भी नहीं रहेंन।
उपदेशक को अनुभव
12 मय उपदेशक यरूशलेम म इस्राएल को राजा होतो।
13 मय न अपनो मन लगायो कि जो कुछ धरती पर करयो जावय हय, ओको भेद बुद्धि सी सोच सोच क मालूम करू; यो बड़ो दु:ख को काम आय जो परमेश्वर न मनुष्यों को लायी ठहरायो हय कि हि ओको म लगेंन।
14 मय न उन सब कामों ख देख्यो जो धरती पर करयो जावय हंय; देखो, हि सब बेकार अऊर मानो हवा ख पकड़नो हय।
15 जो तेढ़ो हय ऊ सीधो नहीं होय सकय, अऊर जो हयच नहाय, ऊ गिन्यो नहीं जाय सकय।
16 मय न मन म कह्यो, “देख, जितनो यरूशलेम म मोरो सी पहिले होतो, उन सब सी मय न बहुत ज्यादा बुद्धि हासिल करी हय; अऊर मोख बहुत बुद्धि अऊर ज्ञान मिल गयो हय।”
17 मय न अपनो मन लगायो कि बुद्धि को भेद लेऊ अऊर पागलपन अऊर मूर्खता ख भी जान लेऊ। मोख जान पड़्यो कि यो भी हवा ख पकड़नो हय।
18 कहालीकि बहुत बुद्धि को संग बहुत दु:ख भी होवय हय, अऊर जो अपनो ज्ञान बढ़ावय हय ऊ अपनो दु:ख भी बढ़ावय हय।